झाबुआ की गुड़िया पर्यटकों को लुभाने ट्विटर पर पहुंची
झाबुआ । झाबुआ की गुड़िया यानी आदिवासी भील-भिलाली की खूबसूरत जोड़ी पर्यटकों को लुभाने के लिए ट्विटर पर पहुंच गई है। ये पहला मौका है जब सरकार ने पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए इस तरह का प्रयोग किया है। इधर, मप्र के झाबुआ में इसकी बिक्री व प्रशिक्षण केंद्र लंबे अरसे से बंद है। प्रचार-प्रसार के अभाव में रोजगार न मिलने से गुड़िया गढ़ने वालों की संख्या भी बीते पांच साल घटकर आधी रह गई है। हुनरमंद हाथ अब गुजरात में दूसरा काम कर रहे हैं। यह आलम तब है जब दावा किया जा रहा है कि भारतीय शिल्प बाजार में 11 फीसद से ज्यादा बढ़ोत्तरी हो रही है।
झाबुआ-आलीराजपुर में मुख्य रूप से सात हस्तशिल्प कलाकृतियों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मान्यता है
Wearing colorful Indian clothes, antique jewelry and smiling faces, the Jhabua Dolls of MP are endearing to say the least!— MadhyaPradeshTourism (@MPTourism) October 10, 2017
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झाबुआ-आलीराजपुर में मुख्य रूप से सात हस्तशिल्प कलाकृतियों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मान्यता है। इनमें झाबुआ की आदिवासी गुड़िया, गलसन हार, पिथोरा आलीराजपुर की बैलगाड़ी (लकड़ी), पंजा दरी, भावरा का पिथोरा आर्ट (पेंटिंग), जोबट का ब्लॉक प्रिंट और कट्ठीवाड़ा का बांस आर्ट मुख्य है। झाबुआ में 1963 में इन शिल्पों को पहचान दिलाने के लिए सरकार ने काम शुरू किया। शिल्पकार रमेश परमार बताते हैं कि उद्यमी यहां बने विकास केंद्र और इंदौर रोड पर बने एंपोरियम दोनों को खुलवाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन कुछ नहीं हो पाया।
राज्यस्तरीय पुरस्कार विजेता शिल्पकार सुभाष गिदवानी बताते हैं कि मार्केटिंग न होने से रोजगार नहीं मिलता। पांच साल पहले 70-80 कलाकार थे। अब 30-40 ही काम कर रहे हैं। हस्तशिल्प मंत्रालय के इंदौर क्षेत्र प्रभारी एलएस मीणा भी मानते हैं कि कम मेहनताना मिलना बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। लकड़ी की बैलगाड़ी बनाने वाले आलीराजपुर के शिल्पकार घनश्याम पवार कहते हैं, एक बैलगाड़ी यहां 500-800 रुपये में मिलती है और सरकारी एंपोरियम में 1500- 1800 में बिकती है। सही मार्केटिंग हो जाए तो आय पांच गुना बढ़ सकती है।
भारतीय हस्तशिल्प बाजार में उछाल और यहां गिरावट
- 467000 एक्सपोटर्स जुड़े हैं इस बाजार से
- 411.07 फीसद की बढ़ोत्तरी, अप्रैल 2016 से मार्च 2017 के बीच
- 41.2 फीसद हिस्सा विश्व बाजार में भारतीय हस्तशिल्प का
- 41.5 फीसद हिस्सा, भारत से होने वाले एक्सपोर्ट आयटम का
- यूएस, यूके, जर्मनी, इटली, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया में भारतीय शिल्प के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध (एक्सपोर्ट प्रमोशनल काउंसिल के मुताबिक)
मजदूरी के लिए चले जाते हैं गुजरात
कोशिश है कि झाबुआ की संस्कृति देखने के लिए लोग झाबुआ आएं। पर्यटन बढ़ेगा तो हस्तशिल्प को भी बाजार मिलेगा। एंपोरियम को वापस खुलवाने की कोशिश जारी है।
– आशीष सक्सेना, कलेक्टर, झाबुआ
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