कलशयात्रा के साथ भागवत कथा का सप्त दिवसीय आयोजन का हुआ श्रीगणेश

भागवत का अर्थ बताते हुए पण्डित लोकेशानंद शास्त्री ने कहा कि ’भा’ अर्थात भगवान,’ग’ अर्थात गहन’, ब अर्थात वाणी एवं त अर्थात तारण होता है। मीरा ने स्वयं ही अपनी वाणी से भगवान का सानिध्य प्राप्त किया था । भागवत इह लोक एवं परलोक के झंझावातों से दूर करने वाली भगवान के साक्षात स्वरूप् का प्रतिबिंब है।

मन की शुद्धि के लिए श्रीमद् भगवत से बढ़कर कोई साधन नहीं है- पण्डित लोकेशानंद

झाबुआ । नगर की धर्मधरा पर भागवताचार्य पण्डित लोकेशानंद शास्त्री के श्रीमुख से 26 दिसंबर बुधवार से 1 जनवरी तक होने वाली श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ श्री कालिकामाता मंदिर परिसर से श्री शिरडी साई मंदिर परिसर स्थित भागवत कथा स्थल तक बेंडबाजों के साथ विशाल कलश यात्रा का आयोजन किया गया । ठा. मनोहरसिंह राठौर, दिलीपसिंह वर्मा एवं सुश्री रूकमणी वर्मा परिवार के सौजन्य से आयोजित भागवत कथा के प्रथम दिन निकाली गई कलश यात्रा का पूरे मार्ग पर पुष्पवर्षा के साथ स्वागत किया गया । कथास्थल पर यात्रा पहूंचने के बाद श्रीमद भागवत कथा का श्रुभारंभ वैदिक मंत्रों से भागवत पूजन के साथ प्रारंभ हुआ । 
         संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के माहत्म्य को बताते पण्डित लोकेशानंद शास्त्री ने कहा कि सच्चिदानंदस्वरुप भगवान श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ,तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाले हैं। कहते हैं कि अनेक पुराणों और महाभारत की रचना के उपरान्त भी भगवान व्यास जी को परितोष नहीं हुआ। परम आल्हाद तो उनको श्रीमद् भागवत की रचना के पश्चात् ही हुआ, कारण कि भगवान श्रीकृष्ण इसके कुशल कर्णधार हैं, जो इस असार संसार सागर से वर्तमान में सुख-शांति पूर्वक पार करने के लिए सुदृढ़ नौका के समान हैं। यह श्रीमद् भागवत ग्रन्थ प्रेमाश्रुसक्ति नेत्र, गदगद कंठ, द्रवित चित्त एवं भाव समाधि निमग्न परम रसज्ञ श्रीशुकदेव जी के मुख से उद्गीत हुआ। सम्पूर्ण सिद्धांतो का निष्कर्ष यह ग्रन्थ जन्म व मृत्यु के भय का नाश कर देता है, भक्ति के प्रवाह को बढ़ाता है तथा भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता का प्रधान साधन है। 
       मन की शुद्धि के लिए श्रीमद् भगवत से बढ़कर कोई साधन नहीं है। यह श्रीमद् भागवत कथा देवताओं को भी दुर्लभ है तभी परीक्षित जी की सभा में शुकदेव जी ने कथामृत के बदले में अमृत कलश नहीं लिया। ब्रह्माजी ने सत्यलोक में तराजू बाँध कर जब सब साधनों, व्रत, यज्ञ, ध्यान, तप, मूर्तिपूजा आदि को तोला तो सभी साधन तोल में हल्के पड़ गए और अपने महत्व के कारण भागवत ही सबसे भारी रहा। अपनी लीला समाप्त करके जब श्री भगवान निज धाम को जाने के लिए उद्यत हुए तो सभी भक्त गणों ने प्रार्थना कि- हम आपके बिना कैसे रहेंगे तब श्री भगवान ने कहा कि वे श्रीमद् भगवत में समाए हैं। यह ग्रन्थ शाश्वत उन्हीं का स्वरुप है।
       पठन-पाठन व श्रवण से तत्काल मोक्ष देने वाले इस महाग्रंथ को सप्ताह-विधि से श्रवण करने पर यह निश्चय ही भक्ति प्रदान करता है। पण्डित लोकेशानन्द ने कहा कि भागवतकथा श्रवण से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मनुष्य को नियमित रूप से कथा का श्रवण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सच्चे मन से प्रभु की भक्ति करने वाला मनुष्य जीवन में दुख नहीं पाता है और मनुष्य को प्रतिदिन कुछ समय भजन के लिए निकालना चाहिए। कथा के माहत्म्य को सुनाते हुए उन्होने कहा कि भागवत कथा मन कोशांकति देने वाली तथा समाज के लिये क्रांति देने वाली है। मानव के पूण्यकर्मो से भागवत कथा के श्रवण एवं आयोजन का लाभ मिलता है । आत्मा को परमात्मा से एकाकार करने वाली सिर्फ भागवत कथा होती है । भागवत का अर्थ बताते हुए उन्होने कहा कि ’भा’ अर्थात  भगवान,’ग’ अर्थात गहन’, ब अर्थात वाणी एवं त अर्थात तारण होता है। मीरा ने स्वयं ही अपनी वाणी से भगवान का सानिध्य प्राप्त किया था । भागवत इह लोक एवं परलोक के झंझावातों से दूर करने वाली भगवान  के साक्षात स्वरूप् का प्रतिबिंब है।
कथा के प्रथम दिन बडी संख्या में श्रद्धालुजन एवं एक ही ड्रेस कोड में महिलायें कथा श्रवण हेतु उपस्थिसत रही । कथा के माहत्म्य के बाद प्रथम दिन की कथा का विराम हुआ तथा भागवत जी की आरती के बाद प्रसादी का वितरण हुआ ।


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