भारतीय संस्कृति में वेलेंटाईन डे मनाना सबसे बडा नैतिक पतन - पण्डित गणेश उपाध्याय

प्रणय दिवस को लेकर श्री उपाध्याय के बेवाक विचार 
झाबुआ । पाश्चात्य संस्कृति में 14 फरवरी वेलेंटाईन दिवस का दुष्प्रभाव आज देश के युवा वर्ग पर सबसे अधिक दिखाई देता है । युवा वर्ग इस दिवस को अपने अलग ही अंदाज में मना कर अपनी पूरातन संस्कृति से विमुख हो रहे है  । नगर के साहित्यकार एवं समाजसेवा मे अग्रणी, कवि एवं हिन्दुधर्म के विद्वान पण्डित गणेश प्रसाद उपाध्याय ने  वेलेंटाईन दिवस को लेकर चर्चा में बताया कि हमारी संस्कृति में अपने पूर्वजों ने मकरसंक्रांति, होली, गुढीपाडवा, गणेशोत्सव तथा दीपावलीके समान विशेषतापूर्ण त्योहार किस प्रकार मनाए जाते हैं, यह सिखाया है। किंतु हम 1 जनवरी को नव वर्षारंभ, प्रेमिकाओं का दिन ‘वेलेंटाईन डे’ ‘मदर्स-डे’, ‘चॉकलेट डे’ इस प्रकारके अनेक विकृत ‘डे’ मनाते हैं । इन विभिन्न ‘डे’द्वारा वासना, कामांधता, विकृति, अश्लीलता एवं अनैतिकताका दर्शन होता है । ये सभी सुख क्षणिक हैं । इस प्रकारका अधर्माचरण करने से चरित्रका हनन होता है, भोगवाद विलासवाद  फैलता है, कामांधता बढती है तथा अनाचारोंकी मात्रा बढती है ।
Celebrating-Valentine-Day-is-the-biggest-corruption-in-Indian-culture-भारतीय संस्कृति में वेलेंटाईन डे मनाना सबसे बडा नैतिक पतन - पण्डित गणेश उपाध्याय पण्डित उपाध्याय के अनुसार युवक-युवतियां एकत्रित होकर 14 फरवरी को प्रेमिकाओं का दिन मनाते हैं । इस दिन वे एक-दूसरेको भेंटवस्तु तथा फूल अथवा ‘पार्टी’ देकर प्रेम व्यक्त करते हैं । वैलेंटाईन डे मनाना, पश्चिमी संस्कृति की अनैतिकता का अनुसरण व हिन्दू संस्कृति का अवमूल्यन है । आर्थिक लाभ हेतु प्रसारमाध्यम ,शुभकामना पत्र-निर्माता इसका प्रसार करते हैं । इससे हिन्दुओं के एक दिन के राष्ट्रांतरण एवं धर्मांतरण को प्रोत्साहन मिलता है । उनका कहना है कि यदि आपने प्रेमिकाओ का दिन 26 वें वर्ष र्में मनाया होगा, तो आपके बालक 16 वें वर्ष में ही वह मनाएंगे । यदि हममें अनैतिकता की मात्रा 40 प्रतिशत होती है, तो बालकों में वह 70 प्रतिशत होती हुई दिखाई देगी । ध्यान में रखें कि आपके बालक आपकी अपेक्षा सभी बातों में आगे बढ रहे हैं । यदि आप धर्माचरण कर रहे हैं, तो आपके बालक भी आपसे आगे बढकर धर्माचरण करेंगे । यदि आप अनैतिकताका आचरण करेंगे, तो भविष्यकी पीढी भी अनैतिक होगी ।
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पण्डित गणेश उपाध्याय
श्री उपाध्याय का कहना है कि क्रांतिकारियो ने देश को स्वतंत्रता प्राप्त होने के लिए अत्यंत परिश्रम किए । क्रांतिकारी देश के लिए फांसी पर चढ गए, अपने घरों का त्याग किया, उस समय छोटे-छोटे बालक भी पथ पर उतरे । क्या उन्होंने यह त्याग इस हेतु ही किया था कि हम अनैतिकताका आचरण करें ? हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि ब्रिटिशों ने जब देशमें अनैतिकता फैलाना प्रारंभ किया, उस समय हमारी संस्कृति पर होनेवाले तीव्र अन्याय का भान होकर लडाई करनेके लिए क्रांतिकारी उनके विरोध में रस्ते पर उतरे । कुछ क्रांतिकारियों के प्राणत्याग करने के पश्चात ही भारतको स्वतंत्रता प्राप्त हुई है । 
            भारतीय संस्कृति विश्व की एकमात्र महान संस्कृति होने के कारण उसकी रक्षा करने के लिए ही हमारे पूर्वजों ने त्योहार मनाना आरंभ किया तथा उसमें भी ब्रिटिशों द्वारा अडचनें उत्पन्न करने के कारण क्रांतिकारियो ने एकत्रित होकर आंदोलन किया । क्रांतिकारियों ने भारत देश स्वतंत्र करने के पीछे विशिष्ट उद्देश्य रखा था । हम हमारे देश में प्राचीन कालावधि से जो भी त्योहार-उत्सव मनाते आए हैं, वे उसी पद्धति से मनाए जाने चाहिए । त्योहार के दिन परिवार के सर्व सदस्य एकत्रित होने के पश्चात देश तथा धर्म के संदर्भ में बातचीत होती थी । उनमें से ही देश प्रेम जागृत होकर पारिवारिक संबंध स्थापित किए जाते थे । क्रांतिकारियों को इस बात का पता था कि हमारी संस्कृति विश्व की एकमात्र महान संस्कृति है । उसका रक्षण करने हेतु हमारे पूर्वज त्योहार मनाते थे, साथ ही धर्माचरण भी करते थे । ब्रिटिशों द्वारा उसमें अडचनें उत्पन्न करना आरंभ करते ही क्रांतिकारियों ने एकत्रित होकर  ब्रिटिशो के विरोध में आंदोलन किया ।
उन्होने आगे कहा कि ये प्रेमिकाओं का दिन हमारे मन एवं बुद्धि पर कौन सी संस्कृति अंकित करता है ? इससे आपके सामने कौन सा आदर्श स्थापित होता है ? इसका उत्तर आपके पास है, किंतु उसका उत्तर देने में आपको लज्जा आती है । प्रेमिकाओं का दिन अर्थात एक-दूसरे के अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं । वही सर्वस्व, उसके लिए ही जन्म, ऐसे मूढ भ्रम में रहने वाले प्रेमी उस दिन मिलते हैं । प्रेमिकाओं का दिन मनाना, अर्थात इसे मूर्खताकी परमावधि ही कहनी पडेगी । ईश्वरने क्यों हमारी सृष्टि की है ? भारतकी संस्कृति, क्रांतिकारियों का त्याग, साथ ही माता-पिता द्वारा किया गया पालन पोषण, इस सभीका विस्मरण कर हम प्रेमिका का दिन मनाते हैं । एक कहावत है, पागल कुत्ता उनके स्वामी को कभी भी नहीं काटता किंतु यहां मानव ही कुत्ते की अपेक्षा नीच हो गया है । 
14 फरवरी को हिंदु प्रेमी-प्रेमिका माता-पिता का विस्मरण कर उनके मनके विरूद्ध आचरण करते हैं । उस क्षणिक सुखके लिए आत्महत्या तक के लिए भी प्रवृत्त होते हैं । क्या प्रेमिका का दिन यही आदर्श सिखाता है ? इस प्रश्नका निर्लज्ज लोग यहां’ ऐसा ही उत्तर देते हैं । यदि आप वास्तव में हिंदुस्थान में जन्मे हैं अथवा आपके माता-पिता ने आपके बचपन में आप पर अच्छे संस्कार किए हैं तथा आपको चरित्रहीन होने से दूर रहना है, तो 14 फरवरी, यह दिन मनाना छोड दें तथा उसे मनाने वालों का प्रबोधन कर उन्हें इससे दूर करें, तो ही आपका जन्म सार्थक होगा । श्री उपाध्याय का कहना है हिन्दुओं की विवाह संस्कृति संयमी व नैतिक प्रेम जीवन सिखाती है । इसीलिए भविष्य में राष्ट्र-धर्मप्रेमियों द्वारा स्थापित होनेवाले धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र में यह भोगवादी डे प्रथा नहीं रहेगी !

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