गल पर्व : गल घूम कर मन्नतधारियों ने उतारी मन्नत

ग्रामीण यह त्यौहार मन्नत धारी की मानता पूरी करने के लिए मनाते है जिससे परिवार में सुख-समृद्धि आती है .
झाबुआ।  जिले भर में होलीका दहन के दूसरे दिन ग्रामीण जन मनाते है गल बाबजी का त्यौहार (गल पर्व ) यहाँ से 4 किलोमीटर की दुरी पर ग्राम झुमका में ग्रामीणों द्वारा गल का त्यौहार मनाया गया, यहाँ आसपास के क्षेत्र के मन्नत धारी भी पहुचते है सभी अपनी मानता पूरी करने गल घूमते है इस वर्ष भी कुल 10 मन्नत धारीयो ने गल घूम कर अपनी मन्नत उतारी।
यह है प्रथा
इसमें मन्नत धारी गल घूमता है जिसमे आसपास के गाँवो से अपने परिवारजन व गांव वालो के साथ मन्नत धारी मन्नत पूरी करने गल स्थल पहुचता है गल स्थल पर एक दिन का मेला लगता है जिसमे ग्रामीणजन नाच गाकर झूले चकरी इत्यादि का आनन्द उठाते है। मान्यता है की ग्रामीण यह त्यौहार मन्नत धारी की मानता पूरी करने के लिए मनाते है जिससे परिवार में सुख-समृद्धि आती है और स्वास्थ्य सम्बन्धी सारी परेशानिया दूर होती है।
हवा में झूलते हुए 5 से 7 परिक्रमा करते हैं
  • मान्यता है कि मन्नत विवाहित व्यक्ति ही उतार सकता है, इसलिए बहुत से मन्नतधारियों के परिजन ने इस परंपरा का निर्वहन किया। तड़वी ने मन्नतधारियों को गल पर घूमाया।
  • आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचते हैं।
  • मन्नतधारी को कमर के बल रस्सी से बांधा जाता है। फिर मन्नत के अनुसार वह गल देवरा की जय करते हुए हवा में झूलते हुए 5 से 7 परिक्रमा करता है।
       इस में एक रस्म में करीब 30 फीट ऊंचे गल (लकड़ी की चौकी पर ) पर कमर के बल झूलते हुए देवता के नाम के नारे लगाए जाते हैं तो एक ओर दहकते अंगारों पर चलकर श्रद्धालु अपनी मन्नत उतारते हैं। इस कार्यक्रम में आसपास के जिलों से भी लोग शाामिल होते हैं। धुलेंडी पर बिलीडोज गांव में गल पर्व के दौरान यह नजारा देखने को मिला। दो दर्जन से अधिक ग्रामीण यहां अपनी मन्नतपूरी करने पहुंचे थे। किसी के यहां गल देवता की मन्नत के बाद संतान हुई थी तो कोई बीमारी से ठीक हुआ था।
गड्ढे में भरे अंगारों पर नंगे पैर चले
  • धुलेंडी पर पेटलावद, करड़ावद, बावड़ी, करवड़, अनंतखेड़ी, टेमरिया आदि स्थानों पर गल-चूल पर्व पारंपरिक रूप से मनाया गया।
  • ग्रामीण मन्नतधारियों ने दहकते अंगारों से भरे गड्ढे के बीच नंगे पैर गुजरते हुए अपनी मन्नत पूरी की। साथ ही अपने आराध्य भगवान को शीश झुकाया।
  • आस्था के इस अनूठे आयोजन को देखने के लिए न केवल स्थानीय बल्कि पड़ोसी रतलाम व धार जिले के ग्रामीण भी बड़ी तादाद में पहुंचे।
क्या है चूल परंपरा
  • करीब तीन-चार फूट लंबे तथा एक फीट गहरे गड्ढ़े में दहकते हुए अंगारे रखे जाते हैं।
  • माता के प्रकोप से बचने और अपनी मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता का स्मरण करते हुए जलती हुई आग में से निकल जाते हैं।
दशकों से निभाई जा रही परंपरा
  • इस पौराणिक परंपरा को निभाने का क्रम दशकों से चला आ रहा है।
  • चूल वाले स्थान में अंगारों के रूप लगाई जाने वाली लकड़ियां और मन्नतधारी के आगे-आगे डाले जाने वाला घी गांव के अनेक घरों से श्रद्धानुरूप आता है।
  • इस बार करीब 25 किलो घी की आहुति चूल में दी गई।
गल पर्व - गल घूम कर मन्नतधारियों ने उतारी मन्नत-Jhabua-Gal-Chul-Parva

गल पर्व - गल घूम कर मन्नतधारियों ने उतारी मन्नत-Jhabua-Gal-Chul-Parva

गल पर्व - गल घूम कर मन्नतधारियों ने उतारी मन्नत-Jhabua-Gal-Chul-Parva

गल पर्व - गल घूम कर मन्नतधारियों ने उतारी मन्नत-Jhabua-Gal-Chul-Parva

गल पर्व - गल घूम कर मन्नतधारियों ने उतारी मन्नत-Jhabua-Gal-Chul-Parva


गल पर्व - गल घूम कर मन्नतधारियों ने उतारी मन्नत-Jhabua-Gal-Chul-Parva

रहें हर खबर से अपडेट झाबुआ न्यूज़ के साथ


Google News