145वीं जयंती पर याद किए गए भगवान बिरसा मुंडा

बिरसा ने पूरे जंगलों की प्राणवायु को संघर्ष की ऊर्जा से भर सबके जीवन का आधार बना दिया था।

झाबुआ। सांसद गुमान सिंह डामोर ने रविवार को कलेक्ट्रेट सभा कक्ष में शहीद बिरसा मुण्डा की जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम का शहीद बिरासा मुण्डा के चित्र में माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर शुभारम्भ किया। श्री डामोर ने इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि देश और प्रदेश में यह सरकार आई है तब से हमारे शहीदों को सम्मान देना शुरू किया है। ऐसे ही एक हमारे स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुण्डा रहें हैं। लगभग सवा सौ साल पहले जब इस देश में दोहरी शासन व्यवस्था थी। पहले तो अंग्रेज, दूसरे जमीदार और तीसरी जनता जिनका शोषण करते थे। ऐसे समय में अगर कोई स्वतंत्रता की बात करें तो यह गौरव की बात है। आदिवासियों का आज भी मुख्य धन्धा खेती है। जंगलों में रहना, स्वतंत्रता पूर्वक रहना आदिवासी समाज के रीति रिवाजों को निभाना यह आज भी मौजूद है और जो हमारा भारतीय संविधान है। उसमें जो आदिवासी की परिभाषा दी है उसमें यह लिखा है कि जो आदिवासी है उसके पेरामीटर्स बनाए गए हैं। जिसमें इसका उल्लेख है उनकों आदिवासी माना गया है। मुण्डा जनजाति में भगवान बिरसा मुण्डा का जन्म आज के दिन ही हुआ था। उनके पिता श्री सुगना मुण्डा तथा माता करनी मुण्डा ने शिक्षा के लिए मिशन स्कूल में भेजा। वहां उन्होंने देखा की उन्हें जो पढ़ाया और सिखाया जा रहा है वह हमारे धर्म की विरूद्ध होने के कारण स्कूल छोड़ दिया। यहां के आदिवासी समाज के लोग गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और अन्य 15 राज्य में मजदूरी के लिए जाते हैं। 

             श्री डामोर ने कहा कि आप कल्पना करीये की जब उस समय में चारों तरफ अंधकार था ऐसे समय में अगर कोई व्यक्ति कहें की यह हमारी जमीन है और इस धरती पर हमारा अधिकार है। आप उस समय में खडे़ होकर सौचें की काई जनजाति का बालक चारों तरफ घोर अंधेरा हो, निराशा और गरीब हो ऐसे समय में वहां कोई बालक यह कहे की यह हमारा राज्य है ये हमारी धरती है तो यह बहुत बड़ी बात है। आज हमारे कई अच्छे-अच्छे लोग इस बात को समझ नहीं पाते। उस समय उस बालक ने कहा था कि महारानी के साम्राज्य का अन्त होना चाहिए और एक तरफ से गरीबी से लड़ना, एक तरफ अशिक्षा से लड़ना और एक तरफ सामाजिक बुराईयों से लड़ना, इन सबसे लड़ते हुए आदिवासी समाज को समझाना बहुत कठिन काम है। इसके बावजूद भगवान बिरसा मुण्डा ने वहां के आदिवासियों को इकट्ठा करना शुरू किया और सबको यह बताया अगर इस देश के कोई बडे़ दुश्मन है तो वह है अंग्रेज 1882 में अंगे्रजों ने पहली बार इण्डियन फारेस्ट एक्ट लागू किया। पहले आदिवासी जंगलों में रहते थे और अपनी इच्छानुसार खेती करते थे। इस एक्ट के आने के कारण आदिवासियों को बड़ी संख्या में जंगलों से खदेड़ना शुरू किया और अंग्रेजों ने आद्योगिक क्रांति के कारण जंगलों को काटना शुरू किया। इस समय बड़ी मात्रा में रेलवे लाईन बिछाई जा रही थी। जब जंगल कटने लगा तब हमारा आदिवासी बेरोजगार होने लगा। उनकों प्रताड़ित करने लगे और ऐसे में जो साहूकार थे। वे एक रूपया देते थे और 10 रूपयें वसूल करते थे। ऐसे समय में बिरसा मुण्डा ने समाज के लोगों को सही रास्ता दिखाया।

कलेक्टर रोहित सिंह ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि यह समय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करने और उनका आभार व्यक्त करने का है और उनके द्वारा प्रज्जवलित दीपों और उनके द्वारा दिए गए संकल्पों पूर्ण करने का है। जिन्होने भारत को स्वतंत्र कराने में अहम भूमिका निभाई। श्री सिंह ने कहा की प्रधानमंत्री भारत को आत्म निर्भर बनाना चाहते है और प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इसके लिए संकल्प लिया कि 2023 तक प्रदेश को आत्म निर्भर बनाएगें। उन्होनंे सभी से अपील की है कि इस संकल्प को पूरा करने के लिए आगे आए। श्री सिंह ने सभी को दिपावली तथा नए वर्ष की शुभकामनाएं दी।

उन्होने कहा कि सिंहभूम प्राचीन बिहार का वह भूभाग है जो वर्तमान में झारखंड के नाम से जाना जाता है, यहां की प्रमुख्य नगरी रांची 19 वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में बिरसा विद्रोह की साक्षी रही है। बिरसा उस महानायक का नाम है जिसने मुण्डा जनजाति के विद्रोह का नेतृत्व किया था। एक इष्ट के रूप में पूजित बिरसा मुण्डा पूरे मुण्डा समाज के साथ-साथ देश के जनजातीय समाज की अस्मिता बन गये। बिरसा ने पूरे जंगलों की प्राणवायु को संघर्ष की ऊर्जा से भर सबके जीवन का आधार बना दिया था। 15 नवम्बर 1875 को जन्में बिरसा मुण्डा के पिता सुघना मुण्डा तथा माता करनी मुण्डा खेतिहर मजदूर थे। 

बिरसा बचपन से ही बडे़ प्रतिभाशाली थे। कुशाग्र बुद्धि के बिरसा का आरंभिक जीवन जंगलों में व्यतीत हुआ। उनकी योग्यता देख उनके शिक्षक ने बिरसा को जर्मन मिशनरी स्कूल में भर्ती करवा दिया। इसकी कीमत उन्हें धर्म परिवर्तन कर चुकानी पड़ी। यहां से मोहभंग होने के बाद बिरसा पढ़ाई छोड़ चाईबासा आ गये। देश में स्वाधीनता की आवाज तेज होने लगी थी। बिरसा मुण्डा पुनः अपनी मूल जनजातीय धार्मिक परंपरा में लौट आये। अंग्र्रेजों ने अपनी कुटिल नीतियों के द्वारा पहले जंगलों का स्वामित्व जनजातियों से छीना फिर बडे जमीदारों ने जनजातियों की जमीन हड़पना शुरू की। इस अन्याय के विरूद्ध बिरसा मुण्डा ने ब्रिटिशों, क्रिश्चियन मिशनरियों, भूपतियों एवं महाजनों के शोषण व अत्याचारों के खिलाफ छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा जनजाति के विद्रोह (1899-1900) का नेतृत्व किया। 3 मार्च 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा को गिरफ्तार कर रांची जेल में बंद कर दिया। जेल में शारीरिक प्रताड़ना झेलते हुए 9 जून 1900 को बिरसा वीरगति को प्राप्त हो गये। बिरसा मरकर भी अमर है। छोटा नागपुर के जंगलों में आज भी बिरसा मुण्डा लोकगीतों में जीवित है। इतिहासकार श्री के.के त्रिवेदी ने जननायक बिरसा मुण्डा के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला।

इस अवसर पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत एवं नोडल अधिकारी श्री सिद्धार्थ जैन, भाजपा जिलाध्यक्ष श्री लक्ष्मण सिंह नायक, श्री दौलत भावसार, डिप्टी कलेक्टर डाॅ. अभय सिह खराड़ी, श्री यशवंत भण्डारी, श्री ओम शर्मा विभिन्न विभागों के अधिकारी, कर्मचारी सहित गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन श्री महेन्द्र कुमार खुराना ने किया तथा आभार अनुविभागीय अधिकारी राजस्व श्री एम.एल.मालवीय ने व्यक्त किया। 

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