शक्ति का पर्व नवरात्रि रविवार से प्रारंभ होगा ,दक्षिणमुखी कालिका माता का सजेगा दरबार

 शक्तिपीठ में प्रतिदिन महाआरती एवं कांकड आरती का होगा आयोजन 

झाबुआ । रविवार 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि पर्व आरंभ हो रहा है। हिंदू परंपरा के अनुसार वर्षा ऋतु के समय चार माह देवता सुषुप्त अवस्था में चले जाते हैं। जिसके कारण  कोई भी मांगलिक कार्य आदि इस समय में नहीं किए जाते हैं। किंतु 9 दिन नवरात्रि के शक्ति की आराधना के माने जाते हैं। जिसमें भक्तगण मां की आराधना करते हैं। इस बारे में मंदिर के सेवादार एवं लम्बे समय से मां कालिका के दरबार में श्रद्धा भक्ति के साथ सेवा करने वाले कोतिलाल नानावटी का कहना है कि दुर्गा सप्तशती के अनुसार कहा जाता है .कि शक्ति बुद्धि धन संपत्ति आदि की धात्री मां नव दुर्गा को माना गया है। शास्त्रों के अनुसार स्वयं ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश ने महिषासुर के आतंक को समाप्त करने के लिए मां आद्यशक्ति का आह्वान किया था, तभी मां दुर्गा ने प्रकट होकर नौ दिनों तक महिषासुर से भीषण युद्ध कर दसवें दिवस उसका वध किया था ।  इस परिप्रेक्ष में नवरात्रि के नौ दिवस शक्ति की आराधना के माने जाते हैं। तथा भक्तों के द्वारा मां का आह्वान किया जाता है । प्रत्येक सनातनी हिंदू परिवारों में मां के इस पर्व को बड़े हर्षोल्लास तथा आनंद से मनाया जाता है।  देवी भागवत के अनुसार राक्षस राज रावण का वध करने के लिए स्वयं भगवान राम ने नवरात्रि में 9 दिवस तक मां की आराधना की थी.तथा उनके आशीर्वाद से दसवें दिन रावण का वध किया था।  इसी प्रकार से अन्य कई कथाएं पुराणों में वर्णित है। 

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        प्राचीन दक्षिणी महाकाली का माता मंदिर झाबुआ में जन सहयोग से नवरात्रि पर्व पर्व सनातनी परंपरा के अनुसार मनाया जावेगा, जिसमे प्रथम दिवस मां की मिट्टी .प्रतिमा की स्थापना की जाती है । अष्टमी को हवन किया होता है।  9 दिवस तक गरबा रास होता है.तथा दसवें दिन मां की प्रतिमा के विसर्जन के साथ-साथ गरबा एवं ज्वारे का भी विसर्जन किया जाता है.। उपरोक्त समस्त कार्य विधि विधान वेदोक्त मंत्रों के साथ विद्वान ब्राह्मणों के सानिध्य में संपन्न किया जाता है । इस अवधि में नगर के सभी भक्तों का अच्छा प्रतिसाद मिलता है। सभी समाज के सभी वर्ग के भक्त अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार देवी की आराधना मंदिर जी में आकर करते हैं। मंदिर जी में एक स्थानक की स्थापना की जाती है । जहां तेल और घी की पृथक- पृथक अखंड ज्योति जलाई जाती है.जिन्हें आठ दिनों तक पर्दे में रखा जाता है। तथा नवमी के दिन आम भक्तों के दर्शनार्थ खोल दिया जाता है ।

       काकड़ा आरती प्रातः काल 5.00 बजे आरंभ की जाती है ,जिसमें 1500 से 2000 भक्तों की उपस्थिति प्रतिदिन बनी रहती है। तथा इसमें मंदिर समिति द्वारा निर्मित शुद्ध घी के राजगिरा का हलवा माताजी को नैवेद्य के रूप में अर्पण कर सभी भक्तों को वितरित कर दिया जाता है। प्रतिदिन दो से तीन क्विंटल के मध्य उक्त प्रसादी का वितरण मंदिर समिति द्वारा किया जाता है । आम श्रद्धालुओं के मध्य काकड़ा आरती क्या है ? इसको जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। काकड़ा शब्द कब से बना है. वास्तव में काकड़ा शब्द का अर्थ होता है ग्राम एवं नगर की सीमा जहां समाप्त होती है,.उसे कांकड़ कहते हैं कांकड़ शब्द से ही काकड़ा बना है। 
कालिका माता के दक्षिणमुखी मंदिर के बारे में नगर के इतिहासवेत्ता  के.के त्रिवेदी का कहना है कि झाबुआ के महाराजा श्री गोपालसिंह जी का जन्म 1840 में हुआ था और वे 1858 में झाबुआ स्टेट की गद्दी पर बैठे, उनका देहान्त 1895 में हुआ । उनके द्वारा झाबुआ में जितने भी मंदिर है, जिसमें श्री गोवर्धननाथजी की हवेली भी शामील है के सहित कालिका माता का मंदिर भी उनके ही शासनकाल में हुआ था । महाराजा गोपालसिंह धर्मनिष्ठ,पूरी तरह सात्विक जीवन बिताने वाले तथा प्रतिदिन मंदिरों में दर्शन के लिये जाते थे तथा गोवर्धननाथ मंदिर में वे भजन मे भी महारानियों सहित शामील भी होते थे, उनके ही द्वारा 1858 से 1895 के बीच मां कालिका का दक्षिणमुखी मंदिर की स्थापना  किये जाने का इतिहास मे उल्लेख है । और तत्समय भी माताजी की कांकडा आरती होती रही है । 
       काकडा आरती के बारे में उल्लेखित है कि कार्तिक मास में आमतौर पर भक्तगण ऋतु परिवर्तन होने पर प्राचीन समय में उस स्थान में स्थित सरोवर तालाब कुआं आदि जो भी जलाशय उनके ग्राम में उपलब्ध होते थे, उसमें जाकर स्नान करते थे तथा समूह में एकत्रित होकर अपने-अपने घर से लाई हुई बाती से आरती करते थे। आज भी हमारे देश के कई प्रदेशों के ग्रामीण अंचल में इस आरती को किया जाता है। जन श्रुति के अनुसार इस आरती का आरंभ महाराष्ट्र राज्य से होना माना जाता है। झाबुआ शहर में विगत 20 वर्ष से अधिक अवधि से काकड़ा आरती का आरंभ महाकालीका  माता मंदिर पर स्वर्गीय गोवर्धनलाल जी मिस्त्री जो कालिका माता के परम भक्त रहे हैं, के द्वारा किया गया था। उस समय 100 से 200 भक्तों की उपस्थिति रहती थी। किंतु वर्तमान समय में प्रतिदिन 1500 से 2000 भक्तों की उपस्थिति बनी रहती है । वैसे तो आरती के प्रति आमजन का जोश एवम उमंग इतना है कि आरती तो 5.00 बजे होती है.लेकिन भक्तगण रात्रि 3.00 बजे से ही मंदिर में आकर लाईन में लग जाते हैं,.ताकि वह मंदिर में अपनी आराध्या मां के दर्शन करीब से कर सके । मंदिर समिति के कार्यकर्ता इस आरती की तैयारी रात्रि 1.00 बजे से ही आरंभ कर देते हैं । मां की आरती को प्रतिदिन नगर का कोई एक भक्त परिवार अपने स्वजनों सहित करता है। कई भक्तगण अपनी मन्नत पूरी होने पर भी इस आरती को पहले से ही आरक्षित करवा लेते हैं । मां की इस आरती के प्रति लोगों की इतनी श्रद्धा है कि आगामी चैत्र नवरात्रि में होने वाली काकड़ा आरती भी अभी से आरक्षित हो चुकी है । जबकि चैत्र नवरात्रि 6 माह पश्चात आऐगी । 

        मंदिर समिति के  अध्यक्ष  एडवोकेट राजेन्द्र अग्निहौत्री एवं समिति के पदाधिकारी राधेश्याम परमार ने नगर की धर्मप्राण जनता से आव्हान किया है कि नौ दिनों तक मां कालिका का यह स्थान सर्व मनोरथ को पूरा करने वाला होकर,शक्तिपीठ के रूप में श्रद्धालुओं के लिये तीर्थवत बन जायेगा । मंदिर के जिर्णोद्धार का कार्य जन सहयोग से पवन गति सेे चल रहा है। नौ दिनों तक मां के दरबार में हर सनातनी श्रद्धालु आकर दर्शन एवं महाआरती तथा काकंड आरती का लाभ उठावें ।
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