झाबुआ में रेत माफियाओं का आतंक: तेज़ रफ्तार रेत डंपर पलटने से पति-पत्नी और बच्चे की मौत
झाबुआ। झाबुआ ज़िले में रेत से लदा एक ट्रक सड़क किनारे बने कच्चे मकान में घुस गया। हादसे के वक्त घर के अंदर सो रहे नूरा मेड़ा (27), उनकी पत्नी रमिला (25) और छह साल की बेटी आरोही की मौके पर ही मौत हो गई। हादसे के बाद ट्रक चालक फरार हो गया। मलबा हटाने में करीब तीन घंटे लगे, तब जाकर तीनों के शव बाहर निकाले जा सके। यह दुर्घटना शनिवार सुबह करीब साढ़े चार बजे की है। जानकारी के अनुसार ट्रक अवैध रूप से रेत ले जा रहा था। छोटा उदयपुर से राजगढ़ होते हुए झिरी गांव की ओर जा रहे इस ट्रक का संतुलन बिगड़ गया और यह काली देवी थाना क्षेत्र के फतीपुरा गांव स्थित चौरन माता घाट के पास बने कच्चे मकान में जा टकराया। भारी-भरकम डंपर की चपेट में आने से तीनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। इस दर्दनाक घटना ने एक बार फिर झाबुआ ज़िले में सक्रिय रेत माफियाओं के आतंक और प्रशासन की ढीली कार्यप्रणाली को उजागर कर दिया है।
हादसा या हत्या जैसी लापरवाही?
गाँव के लोगों का कहना है कि जिस डंपर ने यह हादसा किया, वह अवैध रूप से चल रहा था और रात में बिना किसी रोक-टोक के रेत का परिवहन कर रहा था। प्रशासन की नज़र से बचने के लिए अक्सर ये ट्रक आधी रात या तड़के सुबह चलते हैं। तेज़ रफ्तार, ओवरलोड और बिना किसी सुरक्षा उपाय के चलने वाले ये वाहन किसी भी समय लोगों की जान ले सकते हैं। दुर्भाग्य यह है कि यह खतरा उस परिवार के सिर पर आ गिरा, जो न तो रेत माफियाओं से कोई लेना-देना रखता था और न ही उसकी कोई गलती थी। महज़ 5-7 सेकंड में पूरी झोपड़ी मलबे में बदल गई और उसमें सो रहे तीनों ज़िंदा दफन हो गए।

प्रशासन की कार्रवाई पर उठते सवाल
यह कोई पहला हादसा नहीं है। कुछ ही दिनों पहले झाबुआ कलेक्टर की गाड़ी से भी एक रेत से भरे डंपर की टक्कर हो चुकी है। उस घटना के बाद प्रशासन हरकत में आया और डंपर मालिक की संपत्ति सील कर दी गई थी। तब सबको लगा कि शायद अब प्रशासन सख्ती दिखाएगा और रेत माफियाओं पर नकेल कसेगा। लेकिन सवाल यह है कि जब अधिकारियों की गाड़ी से टक्कर होती है तो कार्रवाई फौरन क्यों होती है? और जब एक गरीब परिवार की जान चली जाती है, तो सिस्टम का रवैया धीमा क्यों हो जाता है?
- क्या गरीब की जान की कोई कीमत नहीं होती?
- क्या प्रशासन केवल बड़े अधिकारियों की सुरक्षा के लिए जागरूक है?
- क्या यह सिस्टम सिर्फ रसूख़दारों के लिए काम करता है?
रेत माफिया का साम्राज्य और मौन सिस्टम
झाबुआ और आसपास के इलाकों में रेत माफिया लंबे समय से सक्रिय हैं। नदियों को खोखला कर रेत का अवैध खनन होता है और अवैध परिवहन के लिए दिन-रात डंपरों की लाइनें लगती हैं। इन डंपरों को रोकने की हिम्मत स्थानीय लोग तो क्या, पुलिस और प्रशासन भी शायद ही करते हैं।
कारण साफ़ है –
रेत माफिया के पास राजनीतिक संरक्षण और पैसे की ताकत दोनों हैं। स्थानीय स्तर से लेकर बड़े स्तर तक उनके तार जुड़े होते हैं। नतीजा यह है कि आम जनता की जान पर खेलकर भी उनका धंधा बेरोकटोक चलता रहता है।
एक परिवार का अंत
फतीपुरा गाँव का यह परिवार बहुत ही साधारण जीवन जी रहा था। पति खेतिहर मज़दूरी करता था, पत्नी घर संभालती थी और मासूम बच्चा अभी खेलने-कूदने की उम्र में था। लेकिन इस हादसे ने उनकी दुनिया ही उजाड़ दी। गाँववालों का कहना है कि बच्चे की चीख तक सुनाई नहीं दी, क्योंकि डंपर का भार इतना अधिक था कि तीनों की मौत तत्काल हो गई। घटना के बाद गाँव भर में सन्नाटा छा गया। हर किसी की आँखें नम हैं और सवाल यही है – क्या इस निर्दोष परिवार को न्याय मिलेगा?
पुलिस और प्रशासन की भूमिका
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुँची। शवों को मलबे से निकालकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। पुलिस ने डंपर को कब्जे में लेकर मामला दर्ज किया है, लेकिन गाँव वालों का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है।
लोगों का सवाल है कि –
- क्या इस डंपर मालिक की संपत्ति भी उसी तरह सील की जाएगी जैसे कलेक्टर हादसे के समय किया गया था?
- क्या इस बार भी कार्रवाई सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह जाएगी?
- क्या प्रशासन गरीबों के लिए भी उतनी ही तत्परता दिखाएगा जितनी अधिकारियों के लिए दिखाता है?
जनता की माँग – सख्त कार्रवाई और न्याय
गाँववालों और सामाजिक संगठनों ने इस हादसे के बाद कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि –
- रेत माफियाओं पर तत्काल कड़ी कार्रवाई की जाए।
- हादसे के जिम्मेदार डंपर मालिक की संपत्ति जब्त कर पीड़ित परिवार को मुआवज़ा दिया जाए।
- अवैध रेत परिवहन पर स्थायी रोक लगे।
- पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत की जाँच हो।
यह माँग केवल फतीपुरा गाँव की नहीं है, बल्कि पूरे ज़िले की है। लोग चाहते हैं कि यह हादसा बदलाव की शुरुआत बने और कोई दूसरा परिवार इस तरह उजड़ने से बच सके।
यह हादसा क्यों खास है?
यह घटना सिर्फ एक सड़क हादसा नहीं है। यह सिस्टम की नाकामी का आईना है। एक ओर प्रशासन दावा करता है कि अवैध खनन और परिवहन पर सख्ती की जा रही है। दूसरी ओर गाँव-गाँव से ऐसी खबरें आती हैं कि डंपर बेधड़क दौड़ रहे हैं। सवाल यह भी है कि यदि प्रशासन ईमानदारी से काम कर रहा है तो फिर ये डंपर रात-दिन कैसे चल रहे हैं? फतीपुरा गाँव का यह हादसा केवल एक परिवार की मौत की कहानी नहीं है। यह उस संघर्ष की कहानी है जो आम आदमी और गरीब हर दिन इस सिस्टम से लड़ते हुए झेलते हैं। यह उस असमानता की कहानी है जिसमें बड़े लोगों के लिए सिस्टम तुरंत हरकत में आ जाता है लेकिन गरीबों के लिए वही सिस्टम सुस्त हो जाता है। आज ज़रूरत है कि इस हादसे को चेतावनी के रूप में लिया जाए। रेत माफियाओं के खिलाफ सिर्फ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि ठोस और स्थायी कार्रवाई हो। पीड़ित परिवार को न्याय मिले और ज़िले के बाकी परिवारों को यह भरोसा दिलाया जाए कि उनकी ज़िंदगी की भी उतनी ही कीमत है जितनी किसी बड़े अधिकारी की।
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